दुनियाभर में भले हिंदुओं की तादाद बहुत ज्यादा हो लेकिन जब कोई पद मिलने की बात आती है तो सबसे पहले हिंदू को पीछे किया जाता है, जब कोई सम्मान देने की बात आती है तो सबसे पहले हिंदू को पीछे किया जाता है। ऐसे अनेकों उदाहरण विश्व इतिहास में भरे पड़े हैं जब इतनी बड़ी आबादी होने के बावजूद हिंदुओं को भेदभाव का शिकार होना पड़ता है। जो विकसित और पश्चिमी देश भारत को तीसरी दुनिया का देश बताते हुए यहां के मानवाधिकारों के बारे में समय समय पर पक्षपाती रिपोर्ट जारी करते हैं वह खुद हिंदुओं के साथ बहुत भेदभाव करते हैं। ब्रिटेन में तो जब ऋषि सुनक प्रधानमंत्री पद की दौड़ में थे तब उनके मूल और धर्म को लेकर उन पर निशाना साधा गया था। अब ऋषि सुनक भले प्रधानमंत्री बन गये हैं लेकिन उनके देश में हिंदुओं के साथ भेदभाव जारी है। यही नहीं, अमेरिका में भी हिंदुओं के साथ भेदभाव की खबरें हाल में सामने आई हैं।
सबसे पहले ब्रिटेन की बात करें तो आपको बता दें कि भारत के हरियाणा राज्य के छात्र करण कटारिया ने दावा किया है कि भारतीय और हिंदू पहचान के चलते उसकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने के लिए जानबूझकर चलाये गये एक अभियान के परिणामस्वरूप लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (एलएसई) छात्र संघ चुनावों के लिए उसे अयोग्य करार दे दिया गया। हम आपको बता दें कि हरियाणा निवासी छात्र करण कटारिया लंदन के इस विश्वविद्यालय में कानून में स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रहा है। कटारिया ने कहा कि वह अन्य छात्रों के समर्थन से एलएसई छात्र संघ चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित हुआ। हालांकि, उसे पिछले हफ्ते अयोग्य करार दे दिया गया। उसका मानना है कि उसके खिलाफ लगाये गये आरोप बेबुनियाद हैं और उसे अपना पक्ष पूरी तरह से रखने का मौका नहीं दिया गया। उसने कहा, ‘‘दुर्भाग्य से कुछ लोग एक भारतीय-हिंदू को एलएसई छात्र संघ का नेतृत्व करते नहीं देखना चाहते थे और मेरे चरित्र तथा पहचान को दागदार करने की कोशिश की…।’’ 22 वर्षीय करण कटारिया ने कहा, ‘‘जब मैंने एलएसई में अपने स्नातकोत्तर की पढ़ाई शुरू की थी, तब मुझे पूरी उम्मीद थी कि मैं छात्र कल्याण के लिए अपने जुनून को पूरा करूंगा। लेकिन मेरे सपने उस वक्त बिखर गये, जब भारतीय और हिंदू पहचान के चलते मेरी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने के लिए जानबूझ कर तैयार किया गया एक अभियान शुरू किया गया।’’
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