पिछले एक वर्ष से भी अधिक समय से पूरे विश्व में लगभग सभी देश लगातार बढ़ती मुद्रा स्फीति की दर को नियंत्रित करने के उद्देश्य से ब्याज दरों में वृद्धि करते जा रहे हैं। अभी हाल ही में अमेरिका ने यूएस फेड दर में 25 आधार अंकों की एवं ब्रिटेन ने केंद्रीय ब्याज दर में 50 आधार अंकों की वृद्धि की है। यही स्थिति लगभग सभी विकसित देशों की है। इन देशों में हालांकि ब्याज दरों में लगातार वृद्धि करने से मुद्रा स्फीति पूर्णतः नियंत्रण में आती दिखाई नहीं दे रही है, हां कुछ देशों में मुद्रा स्फीति में कुछ कमी जरूर आई है। सामान्यतः विश्व के कई देश, विशेष रूप से विकसित देश, यदि ब्याज दरों में वृद्धि करते हैं तो अन्य देशों को अपनी मुद्रा के बाजार मूल्य को बचाने के उद्देश्य से ब्याज दरों में वृद्धि करना एक मजबूरी बन जाता है। परंतु, दिनांक 06 अप्रैल 2023 को सम्पन्न हुई भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की बैठक में रेपो दर में वृद्धि नहीं करने का निर्णय लिया गया है, वैश्विक स्तर पर चल रही आर्थिक परिस्थितियों के बीच यह एक साहसिक निर्णय कहा जा सकता है। बल्कि आगे आने वाले समय में अब अन्य देश भी (विकसित देशों सहित) भारतीय रिजर्व बैंक के इस निर्णय का अनुसरण कर सकते हैं, ऐसी सम्भावना व्यक्त की जा रही है। एक तरह से भारत ने इस संदर्भ में अन्य देशों को राह ही दिखाई है।
दरअसल, मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करने के लिए विकसित देशों द्वारा ब्याज दरों में लगातार वृद्धि करते जाना, अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों को विपरीत रूप से प्रभावित करता नजर आ रहा है, जबकि इससे मुद्रा स्फीति पर नियंत्रण होता दिखाई नहीं दे रहा है। पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं में अब पुराने सिद्धांत बोथरे साबित हो रहे हैं। और फिर, केवल मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करने के उद्देश्य से ब्याज दरों में लगातार वृद्धि करते जाना ताकि बाजार में वस्तुओं की मांग कम हो, एक नकारात्मक निर्णय है। इससे देश की अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। उत्पादों की मांग कम होने से, कम्पनियों का उत्पादन कम होता है, देश में मंदी फैलने की सम्भावना बढ़ने लगती है, इससे बेरोजगारी बढ़ने का खतरा पैदा होने लगता है, सामान्य नागरिकों की ईएमआई में वृद्धि होने लगती है, आदि। अमेरिका में कई कम्पनियों ने इस माहौल में अपनी लाभप्रदता बनाए रखने के लिए 2 लाख से अधिक कर्मचारियों की छंटनी करने की घोषणा की है। किसी नागरिक को बेरोजगार कर देना एक अमानवीय कृत्य ही कहा जाएगा। और फिर, अमेरिका में ही इसी माहौल के बीच दो बड़े बैंक फैल हो गए हैं। यदि इस प्रकार की परिस्थितियां अन्य देशों में भी फैलती हैं तो पूरे विश्व में ही मंदी की स्थिति छा सकती है। मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करने के लिए मांग में कमी लाकर उत्पादन कम करने जैसे निर्णयों के स्थान पर आपूर्ति को बढ़ाए जाने जैसे सकारात्मक प्रयास किए जाने चाहिए। इससे उत्पादन बढ़ेगा, विकास की गति तेज होगी एवं रोजगार के और अधिक नए अवसर निर्मित होंगे।
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