उत्तर प्रदेश में मीडिया समूह कैसे करेंगे कवरेज उसका फरमान जारी किया सूचना निदेशक शिशिर सिंह ने।
सरकार के आदेश अनुसार सूचना निर्देशक ने बताया क्या सवाल मीडिया वाले करेंगे किससे करेंगे।
सरगर्मियां न्यूज। संवाददाता । राजधानी मैं बड़े-बड़े मीडिया संस्थान सरकार के आदेश अनुसार करेंगे सूचना निदेशक की बातों का पालन और पाएंगे करोड़ों का ऐड,*
नमस्कार दोस्तों, इलाहाबाद में या कहें प्रयागराज में महाकुंभ की जोरदार तैयारियां चल रही है। मुख्यमंत्री आदित्यनाथ लगातार वहाँ मुआयना कर रहे हैं। यूपी सरकार के बड़े बड़े अधिकारी मंत्री लगातार प्रयागराज के दौरे कर रहे हैं।खुद प्रधानमंत्री मोदी प्रयागराज में होने वाले महाकुंभ पर नजर रख रहे हैं और इन सबके बीच सरकार, दोनों सरकार, डबल इंजन की सरकार, राज्य सरकार और केंद्र सरकार की तरफ से करीब करीब साढ़े 5000 करोड़ के बजट का आवंटन किया गया है। महाकुंभ की तैयारियों के लिए।और खर्चे हर रोज़ सैकड़ों करोड़ के हिसाब से हो रहे हैं। लेकिन हुआ ये कि महाकुंभ तो 12 साल पर होता है। 6 साल पर अर्धकुंभ होता है और जब महाकुंभ होता है, अर्धकुंभ होता है तो उसका जबरदस्त कवरेज भी होता है। लेकिन इस बार वो कवरेजजो अखबारों में चैनलों पर हो वो कैसे?
सरकार के मनोनुकूल कैसे?
योगी सरकार और बी जे पी सरकार के मन मुताबिक इसके लिए बी जे पी सरकार की तरफ से योगी सरकार की तरफ से एक गाइडलाइन करीब करीब 40 पन्ने की गाइडलाइन जारी की गई है।और ये गाइडलाइन तमाम मीडिया संस्थानों को उत्तर प्रदेश सरकार के सूचना निदेशक की तरफ से भेजी गई है और ये गाइडलाइन इस बात को तस्दीक करती है कि सरकार ने मीडिया संस्थानों को स्टोरी लाइन तय करके।साथ में आप किसकी बाईट लें, किस्से बात करें किस तरह से महाकुंभ की स्टोरी को इस तरह से प्रोजेक्ट करें कि सरकार की छवि ऐसी बने की ऐसा महाकुंभ पहले कभी नहीं हुआ?
पहले के महाकुंभ और अब के महाकुंभ में क्या फर्क है और इसकी कवरेज करते वक्त?
कैसे आप सरकारी सिस्टम और सरकार का महिमा मंडन करें?
इस तरह का भी इस गाइडलाइन में निर्देश एक तरह से फरमान कह सकते गाइडलाइन है। लेकिन दरअसल ये फरमान फरमान इसलिए के हजारों करोड़ का जो ये बजट है जो महाकुंभ में खर्च होने वाला है। महाकुंभ की तैयारियों से पहले खर्च हो रहा है।उसमें से बहुत बड़ा हिस्सा जो मीडिया संस्थानों को मिलने वाला है, कुंभ के कवरेज के लिए विज्ञापन के नाम पर या पेड़ कॅन्टेंट के नाम पर तो इसलिए गाइडलाइन उनके लिए एक तरह से रूल बुक है या कहे फरमान है। क्या है ये गाइडलाइन?
क्यों जिक्र कर रहा हूँ?
और ये सुनना आपको समझना जरूरी है कि कैसे सरकारों काम करती है और इस बी जे पी सरकार में चाहे मोदी की सरकार हो, चाहे योगी की सरकारों कैसे, करोड़ों रुपए फूंक कर या खर्च करके या मीडिया संस्थानों को करोड़ों रुपए देकर करके अपने मन मुताबिक कवरेज कराया जाता है। हालांकि मैं कहूंगा और सरकार करती है लेकिन महाकुंभ।का जिक्र क्यों कर रहा हूँ?
महाकुंभ के इस कवरेज और महाकुंभ के कवरेज के लिए सरकारी गाइडलाइन्स का जिक्र इसलिए कर रहा हूँ कि जब भी महाकुंभ होता है, चैनलों पर पचासवें स्टोरी होती है। बहुत सारे एंकर्स रिपोर्टर्स जाते हैं। एक दौर ऐसा भी था, मैं भी एक बार महाकुंभ गया था। मेरे ख्याल से। 2001का साल था। शायद 2324 साल पहले जब हुआ था और उसके बाद बाद के वर्षों में मैं न्यू चैनल्स का एडिटर रहा। जब मैं चैनल का एडिटर था तब भी महाकुंभ हुआ। लेकिन किसी महाकुंभ या अर्धकुंभ में इस तरह का कोई निर्देश या इस तरह की गाइडलाइन्स?
सरकार की तरफ से नहीं आई कि आपको क्या कवरेज करना है, उस कवरेज को दिखाना कैसे है और उसमें किसकी किसकी बाईट लेनी है तो ये क्या है?
ये जो लंबा चौड़ा फरमान है 10 दिसंबर को जारी हुआ है। यु पी के सूचना निदेशक।शिशिर जी की तरफ से जो सारे मीडिया संस्थानों को भेजा गया नीचे लिखा है। सेवा में न्यूस डाइरेक्टर, प्रबंध संपादक और संपादक एक नोट है। इस नोट में लिखा गया है कि आदरणीय महोदयऔर महाकुंभ जैसी अमूर्त धरोहर से जुड़े तथ्य महाकुंभ से संबंधित जानकारियां आप लोगों तक पहुंचे, जनता को जागरूक किया जा सके, ये सब मीडिया की भागीदारी के बिना संभव नहीं है और इसलिए।इन विषयों पर महत्वपूर्ण शख्सियत के साक्षात्कारों से अधिक समृद्ध किया जा सकता है और इसके इन विषयों का क्रम आवश्यकता के अनुसार ऊपर नीचे किया जा सकता है और इस तरह से आप कवरेज करें और उसके बाद जो असली बात यह है कि इन पन्नों में जो दर्ज है होता ये है।की। हम लोग जब महाकुंभ कुंभ का कवरेज करते थे, अपने रिपोर्टर को जब असाइन करते थे जब चैनल में मैं एडिटर था या एक एडिटर रिपोर्टर की तरफ तरफ से देखने गया था।खुद हम लोग तय करते थे कि क्या कवरेज करेंगे, कैसे रिपोर्टर काम करेंगे?
जो तस्वीरें दिखती थी वहाँ की जो जानकारियां आती थी, रिसर्च से जो जानकारियां मिलती थी, उसके हिसाब से जो न्यूस रूम में सजेस्ट करता है की आप ऐसी स्टोरी करें। लेकिन यहाँ सरकार ने पूरी मुकम्मल व्यवस्था की है। ऐसा लग रहा है कि जैसे स्टोरी लाइन के साथ सब चीज़।तय करके दिया गया। इसलिए आने आने वाले दिनों में अगर आप महाकुंभ के कवरेज की ऐसी स्टोरी देखें जिसका जिक्र मैं करने जा रहा हूँ तो समझ लीजिए कि ये पेय्ड भी हो सकता है और इसके लिए मोटी रकम का भुगतान मीडिया संस्थानों को उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से किया जा चुका होगा या किया जा रहा होगा।और इसलिए आप महाकुंभ के कवरेज में ऐसी ऐसी स्टोरी देखें जिसका मैं जिक्र कर रहा हूँ। तो आप ये ना समझे की वो रिपोर्टर अपनी तरफ से कवरेज कर रहा है। आप समझे कि इस गाइडलाइन के मुताबिक उन उन्हें उनके संस्थान के संपादक या मालिक ने ये फर्रा दे दिया है।ये दर्जनों पढ़ने का और उसके बाद कहा है इसके हिसाब से स्टोरी करते जाओ, टिक मार्क करते जाओ और सिसिर जी को जो सूचना निदेशक है उनको लिंक और कॉपी भेजते जाओ ताकि टिक मार्क हो जाए जो ये जो 5070 स्टोरी माफ़ करिए। ये जो 70 स्टोरी है, ये 70 के 70 हमने कर दी और इस 70 के बदले क्या भुगतान हो रहा होगा ये तो मीडिया संस्थान जाने सूचना निदेशकबहरहाल तो कैसे इसमें बताया गया और आने वाले दिनों में हो सकता कुछ कॉन्क्लेव भी आपको दिखें। प्रयागराज में तो समझे कि वो कॉन्क्लेव भी पेय्ड हो सकता है। उसके लिए सरकार की तरफ से करोड़ों रुपए का भुगतान हो सकता है। हो रहा हो इसलिए जो भी कवरेज देखें उस कवरेज को इस बारीक नजर से देखें क्यों पेय्ड है याएक पत्रकार के तौर पर ऐसी कवरेज की गई है और ये क्यों लगा?
सरकार को ये करना चाहिए जैसे इसमें जो 70 स्टोरी है, कुछ स्टोरी बताता हूँ। धर्म रक्षा से के लिए अखाड़ों का साक्षात्कार अखाड़ों का बदलता स्वरूप हर पन्ने पर 2233 स्टोरी है और स्टोरी के साथ किसकी किसकी बाईट लें। यह है अब जैसे इसमें है।प्रयाग, प्रयागवाल प्रयाग के तीर्थ पुरोहित और इसमें स्टोरी लाइन लिखा हुआ है। स्टोरी लाइन के नीचे स्टोरी के लिए जरूरी तत्व मतलब किसकी किसकी बाईट ले और किस तरह से तीर्थ पुरोहित हैटेक हो गए है, जानना हम लोगों के लिए कैसे दिलचस्प है और नीचे लिखा हुआ है कि तीर्थ पुरोहितों से साक्षात्कार हूँ।जिसमें ये जानने की कोशिश हो कि कुंभ में सरकार की उपलब्धियों पर बातचीत हो और ये जानने की कोशिश हो कि पहले की तुलना में वो क्या अंतर महसूस करते हैं। मतलब पहले जब कुंभ हो रहा था, जब कोई और सरकार रही होगी तब और अब जब योगी जीके सरकार है तब जो कुंभ हो रहा है, ये अंतर कैसे महसूस है?
यही सरकार?
की कोशिश है कि सरकार का सरकार की तैयारियों का मयमा मंडन करें, स्टोरी की तरह जिससे आपको समझ में नहीं आएगा की पेय्ड कॅन्टेंट है। वैसे नए भारत का महाकुंभ डिजिटल क्रांति का शंखनाद इसमें भी आपको क्या क्या करना है ये सब लिखा हुआ है।ये ऐप के जरिए वेबसाइट के जरिए कैसे बुकिंग हो रहा है, क्या इंतजाम है और नीचे लिखा हुआ स्टोरी के लिए जरूरी तत्व। डिजिटल महाकुंभ होने की वजह से 2025 का समागम किस तरह से पहले के तमाम कुम्भ से अलग है और किस तरह इसका श्रेय राज्य सरकार को दिया जाना चाहिए।इस तरह से इसका श्रेय राज्य सरकार को दिया जाना चाहिए। नीचे साफ लिखा भाई ये तो पहले भी राज्य सरकार महाकुंभ कराती रही है, जिसकी भी जब सरकार रही होगी तो सेतु राज़ सरकार और केंद्र सरकार भी उसके लिए कुछ फण्ड आवंटित करता। वो तो होगी लेकिन यहाँ खासतौर से बताया गया और इसलिए जो रिपोर्टर जाएंगे उन्हें जो टिक मार्क करना पड़ेगा की हाँ सर ये स्टोरी हमने कर दी सर।पर स्टोरी पेमेंट है या पैकेज डील है, मुझे नहीं आता पता। इसमें स्टोरी को बुनने में इसका जिक्र होना चाहिए कि राज्य सरकार की भूमिका क्या है?
ये स्टोरी में क्यूआर कोड और दूसरी तकनीक के प्रयोग पर आधारित डेमो सीक्वेंस को भी रखा जा सकता है और बाईट किस के लिए शासन या सरकार से जुड़े अधिकृत प्रतिनिधि की बाईट।मेला प्राधिकरण के अधिकृत अधिकारी या प्रतिनिधि की बाईट इसी तरह से है। और स्टोरी है टेक्नोलॉजी का। महाकुंभ और ए आई कंट्रोल रूम जो बना है उसके लिए उसमें है क्या?
क्या स्टोरी करनी है?
स्टोरी लाइन लिखी है अरे भाई ये तो पूरा लग रहा है जैसे असाइनमेंट काम करता है, हम लोग न्यूस चैनल में जब होते हैं।जब थे तो एक असाइनमेंट डेस्क होता है। इनपुट डेस्क। और वहाँ स्टोरी ऐडिया क्रियेट किया जाता है, रिपोर्टर के थ्रू रिपोर्टर के इनपुट से और फिर उसके बाद वो स्टोरी असाइन की जाती है तो ऐसा लग रहा है जैसे उत्तर प्रदेश सरकार के सूचना निदेशक के पास एक पत्रकारों की टीम है। प्रोड्यूसर भी वही है, एडिटर भी वही है।अब चीफ एडिटर भी वही है। असाइनमेंट डेस्क भी वही है और वो सब ने मिलकर स्टोरी लाइन के साथ पूरा।कंबल इंतजाम कर दिया कि आपको ये करना है और ऐसे करना है और इनकी बाईट लेनी है तो ऐसे इसमें है टेक्नोलॉजी का महाकुंभ ए आई कंट्रोल रूम, इसमें है तमाम कहानियों। राज्य सरकार की इस पहल के से किस तरह अतीत की बात हो चुकी है, स्टोरी में इसकी चर्चा होनी चाहिए।या कंट्रोल रूम की विशेषज्ञता पर मेला प्राधिकरण की प्रतिनिधि की बाईट होनी चाहिए। उसी तरह से डिजिटल सुरक्षा चक मेले की जो सुरक्षा व्यवस्था है उस पर सुरक्षा एक्स्पर्ट की बाईट पुलिस महानिदेशक की बाईट मेला प्राधिकरण की बाईट डिजिटल महाकुंभ का धमाल।ये स्टोरी लाइन है अलग अलग हर पन्ने में 2233 स्टोरी लाइन है। इसमें भी है कि किसी प्रतिनिधि की बाईट ले। ये ले महाकुंभ स्वच्छता में धरती पर स्वर्ग उतारने की पहल इसमें भी है कि समाजसेवी की बाईट ले। श्रद्धालुओं की बाईट ले आध्यात्मिक गुरुओं की बाईट ले।फिर अंदेशो से निपटने की फुल प्रूफ तैयारी तो अधिकारी, कर्मचारी और मेला प्राधिकरण के अधिकृत कर्मचारियों की बाईट लें तो एक तरह से देखें। एक तरह से ये गाइडलाइन नहीं है। ये फरमान है रूल बुक है और असाइनमेंट डेस्क की तरफ से जैसे जिम्मेदारी दी जाती है वो है सुरक्षित प्रयागराज सुरक्षित महाकुंभ।इसमें भी है कि क्या इंतजाम है प्रयागराज में महाकुंभ के लिए और प्रयागराज मेला प्राधिकरण के अधिकारियों की बाईट लें। सब में नीचे लिखा हुआ है स्टोरी के लिए जरूरी तत्व। महाकुंभ में युवा पढ़ेंगे मनेजमेंट का पाठ महाकुंभ कैसे हुए पृथ्वी के सबसे बड़े आयोजन की तैयारी?
तो आयोजन की तैयारी कैसे हो रही है?
कैसे दिन रात एक कर दिया गया शासन?
सरकार के प्रतिनिधि की बाईट मेला प्राधिकरण के अधिकृत प्रतिनिधि की बाईट एक तो ये स्टोरी करेगा तो ऐसे भी ये सब बाईट लेगा, लेकिन अब ये पेड़ है। बार बार मैं यही कहूंगा क्या वैसी ये स्टोरी चलते हुए किसी चैनल पर देखें?
तो समझ जाएं ये पेड़ हो सकता है इसके लिए सूचना निदेशक की तरफ से सूचना विभाग की तरफ से करोड़ों रुपए का पैकेज चैनलों को दिया जा रहा होगा। मीडिया संस्थानों को दिया जा रहा होगा और वो मीडिया संस्थान स्टोरी करके उसका लिंक या।जो भी प्रिंटेड फॉर्म में जीस भी फॉर्म में हो सूचना निदेशक को भेजेंगे। यानी सब कुछ महिमा मंडल के लिए पेय्ड है जबकि कवरेज कुंभ का होना चाहिए। होता रहा है। हम लोग भी करते रहे। एक समय में जब देश में नया नया सॅटीलाइट चैनल आया था, 2001 था शायद तब।दर्जनों चैनल दर्जनों रिपोर्टर दर्जनों कैमरा टीम में वहाँ काम कर रही थी, लेकिन कोई पेड़ काम नहीं था। उसके बाद के कुंभ में भी जीसको जैसे लग रहा था। स्टोरी कर रहे थे लोग और एक एक चैनल से छह छह रिपोर्टर। लेकिन इस बार सब कुछ पेय्ड है क्योंकि उसमें कई बार ऐसी स्टोरी भी हो जाती है जो मेले की दिखा दिखाती है। मेले में सरकारी सिस्टम की पोल खोलती है।मेले में सरकार के बदइंतजामी की को एक्सपोज़ करने वाली भी स्टोरी होती है। अब ये गाइडलाइन के बाद ऐसी स्टोरी करना मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि इसके लिए आपको पैसे मिल रहे है। आप उसके बाद जाकर कोई रिपोर्टर अगर बदइंतजामी की स्टोरी करने लगे?
कि ये साढ़े 5000 करोड़ खर्च करके मेले में जो मुकम्मल इंतजाम होने चाहिए, मल्टीलेयर सुरक्षा में कोई कमी दिख जाए, गंदगी या स्वच्छता की कमी दिख जाए तो वो स्टोरी करेंगे तो हो सकता है आपके पैसे कट सकते हैं। जो मीडिया संस्थान है उनके उसी तरह से है। तीर्थराज प्रयाग में क्या देखा?
एक एक ये भी है।कि इसके जरिए जो बी जे पी का नैरेटिव है उसका प्रचार प्रसार भी करना है। तीर्थराज प्रयाग का महाकुंभ का रंग महाकुंभ का असर अयोध्या काशी दूसरा घरइसमें महाकुंभ शुरू होने के बाद कितने श्रद्धालु वाराणसी अयोध्या पहुंचे है, किस तरह के इंतजाम है, इस पर किसके किसकी बाईट ले ये जानकारी है। राज़ सत्ता, समाज, सत्ता और धर्मसत्ता का समागम स्टोरी लाइन है। यूपी सूचना प्रसारण विभाग की तरफ से धर्म आचार्य अध्यात्मिक गुरुओं की बाईट ले।शासन के अधिकृत प्रतिनिधि की बाइट ले उसके बाद है रेकॉर्डों का महाकुंभ कैसे?
ये महाकुंभ 2019 के प्रयागराज कुंभ में तीन दिनों में लगातार रिकॉर्ड बने और उसके बाद यह कैसे रिकॉर्ड बनेगा?
इसमें भी शासन के अधिकृत प्रतिनिधि की बाइट ले उसके बाद है।क्रूज़ पटरी, सड़क उड़ान, विशेष महाकुंभ की नई पहचान और ये जो हो रहा है इसके लिए फिर रेल मंत्री की बाईट ले। रेलवे के अधिकृत प्रतिनिधि की बाईट ले। एअरपोर्ट अथॉरिटी की बाईट ले। प्रयागराज के किन किन शहरों से रेलवे से जुड़ा है?
स्टोरी में इसे भी जगह मिलनी चाहिए। ये लिखा हुआ है।तो संपादक महोदय सब जगह मिलेंगे, तभी आपकी कंपनी को मीडिया संस्थान को पैसा मिलेगा। ये जगह मिलनी जरूरी है तो यह है उसके बाद अध्यात्म की प्यास बुझाने वाला अमृत कलश उसके बाद है महाकुंभ अलौकिक अल्पनीय है। उसके बाद है टेंट सिटी में राजसी ठाटबाट।इसमें भी मेला प्राधिकरण के अधिकृत प्रतिनिधि की बाईट लें। अब जो ये अड़तीस 40 पन्ने का जो ये फर्रा है, फरमान है?
इसमें शुरू के जैसे तीन स्टोरी बड़ी दिलचस्प है। धर्म रक्षा के अखाड़ों से साक्षात्कार अखाड़े होते हैं। तरह तरह के अखाड़े जूना अखाड़ा से लेकर निर्वाणी अखाड़ा और सब।तो हम लोग भी जाते थे तो अखाड़ों की स्टोरी करते थे। बट यहाँ निर्देश है अखाड़ों का बदलता स्वरूप और महत्त्व। जूना अखाड़ा निजाम के धोखे से उदय तो कैसे?
निजाम के धोखे से जूना अखाड़ा का उदय हुआ। इसके लिए किन किन साधुओं की बाईट लेनी है और कैसे मुगल सेना के पैर उखड़ गए। सन्यासियों के पराक्रम के सामने।तो इसके लिए किस तरह से स्टोरी करनी है, इसका निर्देश है। उसके बाद धर्म रक्षा के अखाड़ों से साक्षात्कार में स्टोरी लाइन में अखाड़ों के में विविधता के बावजूद सनातन धर्म की रक्षा और संवर्धन का लक्ष्य साझा है। और कैसे अखाड़े सनातन धर्म के लिए काम करते हैं?
इसपे स्टोरी करनी है।तो इसमें फिर इसमें भी बताया गया अध्यात्म गुरुओं की बाईट लेनी है। किनकी बाईट लेनी है। अखाड़ों का बदलता स्वरूप और महत्त्व तो अखाड़ों का महत्त्व क्या है?
स्वरूप क्या है?
आज की तारीख में 13 पहले कभी चार हुआ करते थे तो उन अखाड़ों के महामंडलेश्वर के नाम लिखे हैं। इन सब से आपको बाईट लेनी है।नागा साधुओं पर स्टोरी करनी है तो कैसे करनी है?
तो कुल मिलाके सनातन धर्म, अखाड़े, हिंदुत्व इन सब को कूदते हुए और इन सबके साथ सरकार की ऐसी कोशिश जैसे लगता है पहले कभी हुई नहीं। कुंभ में उसको आपको।बुनते हुए स्टोरी करनी है। वहीं इन पन्नों में निर्देश की तरह फरमान की तरह या गाइडलाइन की तरह चैनलों को भेजा गया। तो कुल मिलाकर ये 70 स्टोरी 70 स्टोरी की एक लिस्ट हो सकता है। इसके बाद कोई और गई हो। 70 स्टोरी की लिस्ट अगर मीडिया संस्थानों को भेजा गया।और इस हिसाब से स्टोरी चलते हुए चैनलों पर आप देखें तो आप तय कर ले। मान ले की सब पेड़ है और इतना बड़ा अगर महाकुंभ होता है, जो ऐतिहासिक है, जिसका सदियों पुरानी परंपरा रवायत है, कवरेज होना चाहिए, इसमें कोई शक नहीं, लेकिन उसमें अव्यवस्थाओं की भी कमी नहीं होती है।अब अवस्थाएं होती हैं क्योंकि करोड़ों लोग वहाँ आते हैं। क्या उन अव्यवस्थाओं की खबरें चैनलों पर देख पाएंगे?
अगर इस गाइडलाइन इस फरमान के हिसाब से कवरेज करने की मजबूरी हो जाए और इसके बदले उन्हें करोड़ो रुपए का भुगतान हो रहा हो। चैनलों को ये देखने की बात होगी। इस पर नजर रखने की बात होगी और अब जब।महाकुंभ के लिए आप कॉन्क्लेव देखने लगेंगे। वो सिलसिला अब शुरू होने वाला है। बड़े बड़े कवरेज कवरेज तो उस कवरेज प्लान के पीछे भी ये मोटा भुगतान होगा। तो बहरहाल, मुझे कहीं से हाथ लगा तो मैंने कहा कि चलिए देखिए कि सरकार कैसे बी जे पी सरकार और भी सरकारों करती होगी। बार बार मैं ही कहूंगा किस तरह से?
अपने इस तरह के आयोजन का महिमा मंडन करने के लिए और सरकार के पक्ष में बी जे पी के पक्ष में एक एजेंडा को चैनलों के जरिए पेड़ कॅन्टेंट के जरिए आपके दिमाग पर लोड करने के लिए किस तरह से सरकार काम कर रही है?
बहरहाल।तो बहुत मोटा माल चैनलों को मिलने वाला है, मिल भी चुका हो, कुछ किस्तें जा भी चुकी होगी, कुछ जाएगी और अलग अलग फॉर्म में जाएगी। बहरहाल, कुंभ 13 जनुअरी से 26 फरवरी तक है। दिल्ली में चुनाव है और मेरी भी बहुत दिलचस्पी रही है। कुंभ में मैं दो बार गया हूँ। प्रयागराज।हरिद्वार और अर्धकुंभ में भी गया और एक अपने आप में एक विहंगम दृश्य होता है। जिंदगी का तजुर्बा है तरह तरह के साधु संत श्रद्धालु देखने की चीज़ होती है। कमाल की जाना भी चाहिए, फिर जाऊंगा अगर मौका मिला दिल्ली चुनाव के बाद क्योंकि एक तजुर्बा जो अभी भी मेरे जेहन में वहाँ के तस्वीरें प्रयागराज की दर्ज है। लेकिन।इस बार जाऊंगा। ये देखने की ये कवरेज जो हो रहा है उसका क्या असर हो रहा है?
क्या उस कवरेज में अव्यवस्था, नाकामी, खामियां इनको जगह मिल रही है क्या?
ब्यूरो रिपोर्ट
सैफ खान शरीक