होलिका दहन के धुएं की दिशा करती है भविष्यवाणी, जानें शुभ अशुभ फल।
लखनऊ सवांददाता। व्यक्ति विशेष के लिए होली का पर्व क्या शुभ अशुभ फल लेकर आ रहा है, इस जिज्ञासा का समाधान होने के साथ-साथ अगर यह भी जानकारी मिल जाए कि सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए होली का पर्व कैसा रहेगा तो यह होगा सोने पे सुहागा। ज्योतिष शास्त्र के अन्तर्गत होलिका जलने के मुहूर्त से लेकर होलिका दहन के समय तथा होलिका जलने के बाद होली की अग्नि से उत्पन्न होने वाले धुएं से भी शुभाशुभ विचार करने की प्राचीन परम्परा है। आइए जानते हैं, होली के धुएं से भविष्य कथन का विचार।
ज्योतिष शास्त्र के संहिता ग्रंथों में व्यक्ति विशेष से उपर उठकर सम्पूर्ण देश, राष्ट्र के लिए शुभाशुभ का सम्यक विचार किया जाता है। त्रिस्कन्ध ज्योतिष शास्त्र में सिद्धांत ज्योतिष, संहिता ज्योतिष एवं होरा ज्योतिष प्रमुख स्कन्ध माने गए हैं। जहां होरा स्कन्ध की उपयोगिता किसी व्यक्ति विशेष के बारे में भविष्यवाणी करने में सहायक होती है, वहीं संहिता स्कन्ध में वर्णित ज्ञान की सहायता से एक साथ विश्व, राष्ट्र, देश, शहर, ग्राम स्तर पर शुभ अशुभ का विचार कर भविष्यवाणी की जाती है।
होलिका दहन के समय यदि होलिका से उठने वाला धुंआ अथवा होली की अग्नि की लपटें पूर्व की ओर जाए यानी कि होली पर पूर्व दिशा की ओर हवा चले तो संहिता ग्रंथों के अनुसार यह समझना चाहिए कि राजा एवं प्रजा, दोनों के लिए उस वर्ष की होली सुखमय रहेगी यानी कि पूरे राज्य में सुख, सम्पन्नता का वास होगा।
होलिका दहन के समय यदि होलिका से उठने वाला धुंआ दक्षिण दिशा की ओर जाने लगे यानि कि होली पर दक्षिण की ओर होलिका दहन के समय हवा चल रही हो, तो इस शकुन संकेत से विद्वान ज्योतिषाचार्यों द्वारा यह अभिप्राय निकाला जाता है कि ऐसी परिस्थिति में राज्य की सत्ता भंग और दुर्भिक्ष की सम्भावनाऐं बढ़ जाती हैं।
होलिका दहन के समय यदि होलिका से उठने वाला धुआं एवं अग्नि की लपटें पश्चिम की ओर जाने लगे यानी कि होलिका दहन के समय पश्चिम दिशा की ओर हवा चले तो इसे अच्छा माना जाता है, इसके कारण आम जनमानस में सौहार्द की भावना विकसित होती है, साथ ही देश की आर्थिक व्यवस्था मजबूत होती है।
होलिका दहन के समय यदि होलिका से उठने वाला धुआं उत्तर दिशा की ओर जाने लगे यानि कि होली पर उत्तर की ओर होलिका दहन के समय हवा चल रही हो, तो इस शकुन संकेत से विद्वान ज्योतिषाचार्यों द्वारा यह अभिप्राय निकाला जाता है कि ऐसी परिस्थिति में फसल की पैदावार अच्छी होती है और धान्य की वृद्धि होती है।
होलिका दहन के समय होलिका की अग्नि अथवा होलिका का धुंआ यदि पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण दिशा की ओर न जाकर आकाश की तरफ सीधा जाए तो यह संकेत उस देश के राजा को शोक अर्थात सत्ता परिवर्तन का प्रबल योग बनाता है।
तुलसीदास जी ने फाल्गुन मास की पूर्णिमा सी को अन्य महीनों की पूर्णिमा से अधिक श्रेष्ठ बतलाया है। वे कहते हैं, ‘‘त्रिबिध सूल होलिय जरे, खेलिय अब फागु।’’ अर्थात् ‘‘इस आनन्दमयी होली की फाल्गुनी पूर्णिमा के दिन दैहिक, दैविक, भौतिक इन तीनों तापों की होली जलाकर (भगवान के साथ) प्रेम की खूब फाल्गुनी होली खेलनी चाहिए।’’ मान्यताओं के अनुसार होलिका दहन के बाद जब होली की भस्म ठंडी हो जाए तो उस होली-भस्म को मस्तक पर तिलक लगाने से वर्ष भर व्यक्ति आधि-व्याधियों से बचा रहता है।
ब्यूरो रिपोर्ट-
साभार-NBT News.