गर्भाशय में दो बार भ्रूण को खून चढ़ाकर दिया जीवन KGMU में पहला फिटल ब्लड ट्रांसफ़्यूशन।
गर्भ मेंएल पल रहे बच्चे में हो गई थी खून की कमी मां के गर्भाशय में इस तकनीक से शिशु को चढ़ाया ब्लड।
लखनऊ संवाददाता । उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग (क्वीन मेरी) के डॉक्टरों के प्रयासों से मां के पेट में पल रहे बच्चे को जिंदगी मिली है 7 महीने की गर्भवती महिला के पेट में पल रहे बच्चे में खून की कमी की
समस्या थी जिसके चलते उसे कानपुर से केजीएमयू के लिए रेफर कर दिया गया था वहीं क्वीन मेरी अस्पताल की डॉ सीमा मेहरोत्रा व उनकी टीम ने गर्भाशय में ही दो बार भ्रूण को रक्त चढ़ा कर जीवन दे दिया है इस तरह केजीएमयू में पहला फिटल ब्लड ट्रांसफ़्यूशन सफलता पूर्वक हो गया है अब मां और बच्चा दोनों स्वस्थ है वहीं केजीएमयू वीसी सोनिया नित्यानंद ने पूरी टीम को बधाई दी है दरअसल 32 वर्षीय प्रतिमा 7 महीने की गर्भवती थी प्रसूता को सात महीने के गर्भवती होने पर भ्रूण में खून की कमी पाए जाने पर कानपुर से केजीएमयू के लिए रेफर कर दिया गया था डॉ. सीमा मेहरोत्रा ने बताया कि केस हिस्ट्री स्टडी करने पर पता चला कि महिला पूर्व में दो बार गर्भवती हुई थी और इस बार लाल रक्त कोशिका एलोइम्युनाइज़ेशन की शिकार हुई है उन्होंने बताया कि जिसके बाद गर्भाशय में भ्रूण को दो बार खून चढ़ाकर 35 हफ़्ते में सिजरियन द्वारा 3 किलो के बच्चे की डिलीवरी कराई गई है वहीं ऐसा पहली बार था जब केजीएमयू की फिट्ल मेडिसिन यूनिट ने गर्भास्थ शिशु को मां के पेट से खून चढ़ाया है इस तरह केजीएमयू ने बड़ी कामयाबी हासिल कर ली है वहीं डॉक्टरों की माने तो मेडिकल में इंट्रआयूटिराइन ट्रांसफ्यूजन (intrauterine transfusion) कहलाने वाले इस प्रोसिजर में अल्ट्रासाउंड की मदद से सुई के जरिये गर्भाश्य में ही भ्रूण को रक्त चढ़ाया जाता है केजीएमयू की स्त्री एवं प्रसूति रोग की विभागाध्यक्ष डॉ. अंजु अग्रवाल ने बताया कि केजीएमयू का क्वीन मैरी हॉस्पिटल भ्रूण चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करवा रहा है अब हमने आरएच- आइसोइम्युनाइज़ेशन गर्भावस्था के इलाज में सफलता हासिल कर ली है वहीं डॉ. नम्रता ने बताया कि मां-बाप के ब्लड आरएच विपरीत होने पर ऐसी स्थिति बनती है नवजात की मां का ब्लड ग्रुप नेगेटिव और पिता के ब्लड आरएच पॉजिटिव होने के कारण भी यह स्थिति बनती है डॉ. नम्रता के अनुसार इस विपरीत रक्त समूह के कारण भ्रूण आरएच पॉजिटिव हो सकता है और मां में एंटीबॉडी विकसित होते हैं और ये एंटीबॉडी प्लेसेंटा को पार करते हैं और भ्रूण के आरबीसी को नष्ठ कर देते है धीरे-धीरे ये भ्रूण में एनीमिया का कारण बनते हैं ऐसी स्थिति में पूरे भ्रूण में सूजन आ जाती है ऐसे मामलों में गर्भाशय में ही भ्रूण की मृत्यु हो जाती है वहीं डॉ. मंजुलता वर्मा ने बताया कि अमूमन हजार से बारह सौ प्रसूताओं में किसी एक को इसका गंभीर खतरा होता है लेकिन ट्रांसफ्युजन से इसको रोका जा सकता है फिलहाल गर्भवती महिला ने 3014 ग्राम वजन के स्वस्थ नवजात को जन्म दिया है जिससे परिवार और डॉक्टरों दोनों को बहुत खुशी मिली है डॉक्टरों की टीम में विभागाध्यक्ष प्रोफेसर अंजू अग्रवाल, डॉ. तूलिका चंद्रा की अध्यक्षता में ब्लड बैंक से सहयोग मिला है केजीएमयू के क्वीन मेरी में सिर्फ लखनऊ से ही नहीं बल्कि प्रदेश के अन्य जिलों से भी बड़ी संख्या में मरीज आते हैं इसलिए यह सफलता किसी बड़ी लड़ाई को जीतने से कम नहीं थी हालांकि किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि इस तरह का इलाज सफलतापूर्वक किया गया है डॉक्टरों को पूरा भरोसा है कि यह सिर्फ़ एक शुरुआत है और आगे भी ऐसे कई नए प्रयास किए जाएंगे।*
*लाइव सरगर्मियां न्यूज़ से संवाददाता रवि उपाध्याय की रिपोर्ट*